मंगलवार, 22 सितंबर 2015

आखिर वे कौन से लोग है भाजपा की लुटिया डुबोना चाहते है।

भाजपा में कुछ लोग ऐसे हैं जो बार - बार भाजपा की किरकिरी करा रहे है। कभी भूमि बिल की छटपटाहट तो कभी गजेन्द्र सिंह की तैनाती और आज नया शक़ूफ़ा हिटलर जैसा फरमान लोगो की अभिव्यक्ति में ताला। किरकिरी के बाद वापस हुआ आदेश। ऐसा महसूस हुआ जैसे विचारवान लोगो का समूह न होकर ये महज लफडेबाजों का गिरोह है। मोदी जी अभी वख्त है, शम्भलो नहीं तो ये जनता को आपसे दूर कर देंगे। जैसे कि संग़ठन व मंत्रिमंडल में जिन लोगो ने खुलकर आपका साथ दिया उनके समूह के ही नेताओ को किनारे लगाने का काम किया गया।----विनोद सचान 
दैनिक भास्कर का लेख देखे -----
    dainikbhaskar.com
    Sep 22, 2015, 13:48 PM IST


टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को एलान किया कि सरकार नेशनल इन्क्रिप्शन पॉलिसी का ड्राफ्ट वापस लेगी। प्रसाद ने कहा, ''मैं कहा है कि ड्राफ्ट वापस लिया जाए, इसमें जरूरी बदलाव करके दोबारा इसे वापस लाया जाए।'' प्रसाद के मुताबिक, ''मैं साफ कर देना चाहता हूं कि जो सरकार की ओर से कल रिलीज किया गया, वो केवल ड्राफ्ट था। सरकार का नजरिया नहीं है। हमारी सरकार सोशल मीडिया की आजादी का समर्थन करती है। हमें सरकार की ओर से उठाए गए कदमों पर गर्व है।''
बता दें कि इस ड्राफ्ट के नियमों को मंजूरी मिलने पर यूजर्स को वॉट्सऐप और दूसरी चैट सर्विसेज के मैसेज 90 दिन तक सेव करके रखने पड़ते। पुलिस और दूसरी एजेंसियों के मांगने पर उन्हें ये मैसेज दिखाने भी पड़ते। ड्राफ्ट सामने आने के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर इसका तीखा विरोध किया था। ताजा घटनाक्रम पर साइबर लॉ एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने कहा, ''इस मामले में तीन पक्ष थे। एक सरकार, दूसरा यूजर और तीसरा इंडस्ट्री। यूजर्स वाला क्लॉज हटाकर सरकार दोबारा से ड्राफ्ट लाएगी। मैसेज सेव करना यह यूजर्स की जिम्मेदारी नहीं है। हालांकि, सरकार इंडस्ट्री से यह लगातार बोलती रहेगी कि अगर आपको यहां बिजनेस करना है तो भारत में अपनी सर्विसेज रजिस्टर करो। ''
अब तक क्या हुआ?
सरकार वॉट्सऐप, स्नैपचैट और गूगल हैंगआउट्स जैसे इंटरनेट बेस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम से इन्क्रिप्टेड मैसेज डिलीट करने को जल्द ही गैरकानूनी बनाना चाहती थी। सरकार यह भी चाहती थी कि आपको 90 दिन पुराने सारे रिसीव्ड मैसेज प्लेन टेक्स्ट में सेव करके रखने पड़ें और किसी भी इन्वेस्टिगेशन की स्थिति में पुलिस के कहने पर दिखाने भी पड़ें। लेकिन नई ड्राफ्ट पॉलिसी पर सोमवार शाम जैसे ही विवाद हुआ, सरकार इससे पीछे हट गई। टेलिकॉम मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन एन.एन. कौल ने ‘दैनिक भास्कर’को बताया कि आम यूज़र्स को इन्क्रिप्टेड डाटा 90 दिन तक स्टोर रखने पर मजबूर नहीं किया जाएगा। वहीं, टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने भी मीडिया को बताया कि यह जिम्मेदारी सिर्फ इंटरनेट बेस्ड मैसेजिंग सर्विस देने वाली कंपनियों पर होगी। कोई नियम नहीं बनाया गया है। सिर्फ राय मांगी गई है। सरकार की तरफ से यह सफाई दी गई कि ड्राफ्ट पॉलिसी में सोशल मीडिया साइट्स और मैसेजिंग ऐप्स को छूट दी जाएगी। हालांकि, बैकिंग ट्रांजेक्शन के दौरान बनने वाले इन्क्रिप्टेड लॉग्स पर सरकार क्या करेगी? इसे लेकर सस्पेंस कायम है।
क्या है ड्राफ्ट में?
सरकार की नई ड्राफ्ट पॉलिसी पर 16 अक्टूबर तक पब्लिक से राय मांगी गई है। दरअसल, सरकार नेशनल सिक्युरिटी के मकसद से इन्क्रिप्शन पॉलिसी बदलना चाहती है। सरकार किसी भी क्राइम की जांच के दौरान पर्सनल ईमेल, मैसेज और यहां तक कि प्राइवेट बिजनेस सर्वर तक सिक्युरिटी और इंटेलिजेंस एजेंसियों का एक्सेस चाहती है। इसलिए उसने नई पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार किया है। इन्क्रिप्टेड मैसेज का इस्तेमाल पहले मिलिट्री या डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन में होता था। लेकिन कई इंटरनेट बेस्ड मैसेजिंग सर्विसेस देने वाली कंपनियां अब आम यूज़र्स के लिए इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करने लगी हैं। (पढ़ें पूरा ड्राफ्ट)
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर लॉ एक्सपर्ट विराग गुप्ता और सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के पॉलिसी डायरेक्टर प्रणेश प्रकाश dainikbhaskar.com के रीडर्स को Q&A के जरिए बता रहे हैं कि यह मुद्दा बड़ा क्यों है? अगर यह ड्राफ्ट पॉलिसी आगे बढ़ती है तो इसका असर क्या हो सकता है? बतौर यूज़र आपको कैसे नुकसान हो सकता है और सरकार को क्या फायदा हो सकता है?
मुद्दा क्यों है बड़ा?
यह मुद्दा इसलिए बड़ा है क्योंकि वॉट्सएेप, गूगल हैंगआउट, एप्पल, ब्लैकबेरी मैसेजिंग, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपचैट और ऑनलाइन बैंकिंग गेटवे चलाने वाली कंपनियां किसी न किसी तरह के इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करती हैं। इनमें से अधिकतर के सर्वर भारत में नहीं हैं। अधिकतर कंपनियां भारत में रजिस्टर्ड तक नहीं हैं। लेकिन इनका बड़ा यूज़र बेस भारत में है, जो ड्राफ्ट पॉलिसी के मंजूर हो जाने पर नए नियमों के दायरे में आ सकते हैं।
- 9 करोड़ भारतीय वॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं। जबकि दुनिया में इसके 90 करोड़ यूजर्स हैं।
- 97.3 करोड़ कुल मोबाइल यूजर्स हैं भारत में। इनमें 32.73 करोड़ इंटरनेट यूज करते हैं।
- 34 फीसदी लोग मोबाइल पर इंटरनेट का यूज़ करते हैं।
- 90 फीसदी एंंड्रॉयड फोन यूजर्स वॉट्सऐप पर हैं।
सरकारी ड्राफ्ट ने कैसे आम यूज़र्स को फिक्र में डाल दिया?
1. आपको मजबूर कर सकती है सरकार
ड्राफ्ट पॉलिसी कहती है कि यूज़र, ऑर्गनाइजेशन या एजेंसी को ट्रांजैक्शन या मैसेज 90 दिन तक प्लेन टेक्स्ट में स्टोर कर रखना होगा, ताकि जब कभी सुरक्षा एजेंसियां इसकी मांग करें तो उसे अवेलेबल कराया जा सके। साइबर एक्सपर्ट विराग गुप्ता कहते हैं कि इस ड्राफ्ट में ‘यूज़र’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए था। आखिर यूज़र क्यों 90 दिन तक रिकॉर्ड स्टोर रखे? यूजर के लिए मुश्किलें हो सकती हैं। इसकी वजह यह है कि कई यूज़र्स नहीं जानते कि वे कैसे 90 दिन का लॉग प्लेन टेक्स्ट में स्टोर कर रखें।
2. कंपनी ने रिकॉर्ड नहीं रखा तो आपके लिए हो सकती हैं मुश्किलें
साइबर एक्सपर्ट प्रणेश प्रकाश कहते हैं कि मान लीजिए आप किसी ऐसी मैसेजिंग सर्विस के यूज़र हैं, जो भारत में रजिस्टर्ड नहीं होना चाहती, तो मुश्किल होगी। सरकारी ड्राफ्ट की लैंग्वेज यही कहती है कि अगर कंपनी आपके 90 दिन के मैसेज का इन्क्रिप्टेड रिकॉर्ड नहीं रखेगी तो कानून आप पर लागू हाेगा, विदेश में सर्वर रखने वाली कंपनी पर नहीं। ऐसे में, यूज़र की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
3. सर्विसेस हो सकती हैं बंद
साइबर एक्सपर्ट विराग गुप्ता कहते हैं कि मान लीजिए आप वॉट्सऐप यूज़र हैं और आपकी इस पर काफी ज्यादा डिपेंडेंसी है, तो दिक्कत हो सकती है। अगर वॉट्सऐप सरकार के नियम नहीं मानती तो उसकी सर्विसेस भारत में डिस्कन्टिन्यू भी हो सकती हैं। ऐसे में, भी यूज़र को नुकसान है। ड्राफ्ट तो ऐसी ही बात कहता है।
आखिर क्या है इन्क्रिप्शन?
1. वॉट्सऐप : जब आप वॉट्सऐप जैसे मीडियम पर मैसेज भेजते हैं तो वह अपने आप इन्क्रिप्टेड हो जाता है या फिर स्क्रैम्बल्ड टेक्स्ट में बदल जाता है। जब वह रिसीवर तक पहुंचता है तो वह फिर नॉर्मल टेक्स्ट में बदल जाता है। वॉट्सऐप में नॉर्मल मैसेज तो आपकी चैट हिस्ट्री में होते हैं। लेकिन एंड्रॉइड का उदाहरण लें तो उसमें फाइल मैनेजर में वॉट्सऐप का फोल्डर होता है। उस फोल्डर में डाटाबेस का एक और फोल्डर होता है। इस फोल्डर के अंदर db.crypt8 के साथ इन्क्रिप्टेड चैट हिस्ट्री रोजाना सुबह 3 से 4 बजे के बीच स्टोर हो जाती है। आठ दिन का डाटा आपके फोल्डर में होता है। बाकी डाटा सर्वर में सेव होता जाता है।
2. आई मैसेज : एप्पल के आई मैसेज में भी इन्क्रिप्शन ऑटोमैटिक होता है। बतौर यूजर इसमें आपको कुछ नहीं करना होता।
3. गूगल : जीमेल, जीटॉक और हैंगआउट्स के मैसेजेस में भी एक तरह का इन्क्रिप्शन होता है। यह गूगल के सर्वर पर स्टोर रहता है। गूगल इंडिया तो भारत में रजिस्टर्ड है, लेकिन हैंगआउट्स चलाने वाली गूगल इंक यहां रजिस्टर्ड नहीं है।
4. ऑनलाइन बैंकिंग : इस तरह के ट्रांजैक्शन में भी इन्क्रिप्शन कोड्स बैंकिंग गेटवे के सर्वर पर स्टोर हो जाते हैं। इसे अनलॉक करने के लिए यूजरनेम, पासवर्ड और खास एल्गॉरिदम की जरूरत होती है।
5. ब्लैकबेरी : यह कंपनी भी ब्लैकबेरी मैसेंजर के लिए इन्क्रिप्शन का इस्तेमाल करती है, जिसे सिक्युरिटी एजेंसियां ट्रेस नहीं कर सकतीं। ब्लैकबेरी के सर्वर विदेश में हैं और भारत सरकार की इनकी इन्क्रिप्टेड डाटा तक पहुंच नहीं थी। भारत के कड़े रुख के बाद ब्लैकबेरी अपनी ईमेल सर्विस को सरकारी दायरे में लाने को राजी हुई।
एेसा कानून कहां-कहां?
>चीन, पाकिस्तान और रूस में इस तरह के कानून का सख्ती से पालन होता है। वैसे, दुनिया के कुल 75 देशों में अलग-अलग शर्तों के साथ ये कानून लागू हैं।

>भारत में जो कानून लाया जा रहा है, वह चौथी कैटेगरी का है। इस कैटेगरी का कानून इजरायल और सऊदी अरब में ही लागू है।
सरकार की सफाई- ऐसे कोई नियम नहीं, सिर्फ राय मांगी गई है
वॉट्सऐप पर ड्राफ्ट जारी होते ही सोशल मीडिया पर लोगों ने सरकार को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। आखिरकार, सरकार ने सफाई दी कि अभी कोई नियम नहीं बनाए गए हैं। सिर्फ पब्लिक से राय मांगी गई है। दरअसल, सरकार को लगा कि इसका प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे पर असर पड़ सकता है। मोदी वहां फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों के प्रमुखों से मिलने वाले हैं। दूसरी ओर बिहार चुनाव है, जहां फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन को मुद्दा बनाया जा सकता है। सोमवार शाम दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अफसरों से पूछा है कि बिना पूछे जल्दबाजी में किसने ड्राफ्ट वेबसाइट पर डाले?

उन्होंने कहा कि मंत्रालय तुरंत बताए कि यह नियम लागू नहीं होगा और लोगों को मैसेज संभालकर रखने की जरूरत नहीं होगी। यह जिम्मेदारी मैसेजिंग कंपनियों पर होगी। इस मामले पर टेलिकॉम मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन एन.एन. कौल ने ‘दैनिक भास्कर’ को बताया कि असल में पब्लिक से यह राय मांगी गई है कि इंटरनेट पर ऐप के सहारे चलने वाली मैसेजिंग ग्रुप और मैसेजिंग कंपनियों से सिक्युरिटी जैसे मसले पर किस तरह से सेंसेटिव मैसेज हासिल किए जाएं? आम तौर पर देखा गया है कि लोग अब मैसेजिंग का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इसमें आम लोगों से मैसेज का डिटेल लेने का कोई सवाल नहीं है। बता दें कि होम मिनिस्ट्री लगातार टेलिकॉम मिनिस्ट्री पर ऐसी एेप बेस्ड कंपनियों पर नियम लागू करने की मांग करती रही है, जिससे किसी भी स्थिति में इन कंपनियों को कानून के दायरे में इन्हें लाते हुए इनसे मैसेज और डाटा हासिल किए जा सकें।